वो आएंगे किसी मेहमान के रूप में , किसी शरणार्थी के रूप में , किसी आक्रमणकारी के रूप में , किसी व्यापारी के रूप में , किसी यात्री के रूप में । आपके आसपास धीरे धीरे बस जाएंगे , आपसे प्रेम सम्बन्ध बनाएंगे , आपकी माँ बहेनो को आकर्षित करेंगे , नहीं हुई तोह उनके साथ ज़बरदस्ती करेंगे । उन्हें अपने जैसा बनाएंगे । आपने जिन लोगों को उनकी बुरी व्यथा देखकर , उनसे प्रभावित होकर अपने आस पास बसने दिया , अब वो आपको दूसरी तरह से प्रभावित करेंगे ।
अब वो आपकी संस्कृति में अपनी संस्कृति मिला देंगे , फिर आपके व्यहवार , विचार को दगा बताने लगेंगे । आपके हज़ारों साल पुरानी सभ्यता का मखौल बनाएंगे । अब वो आपके आस्था के केन्द्रों को दकियानूसी बताएंगे । लेकिन इस दौरान वो आपके संसाधनों का पूर्ण दोहन करेंगे , खुद इन प्राकृतिक और मानवीय साधनो का उपयोग करके समृद्ध हो जाएंगे ।
वो आपके बीच में , आपके बगल में , आपके पीछे बैठकर आपको क्या करना है , इसका फैसला करेंगे । आपकी सामजिक , आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर पकड़ मजबूत करेंगे । आप बोल तो पाएंगे लेकिन कुछ भी नहीं "बोल" पाएंगे । जब आप कुछ करने जाएंगे तोह आपको समाज तोड़ने वाला बताया जाएगा , जबकि ये काम वो खुद ही कर रहेंगे होंगे ।
जब इन समस्याओं का प्रतिरोध करेंगे तब आपको एक नए गतिरोध का सामना करना पड़ेगा , जहाँ दूसरे आपके घर में ही खड़े होकर आपको गलत साबित करने पर आमादा रहेंगे । आप कुछ नहीं कर सकेंगे क्यूंकि वहां के नुमाइंदे भी आपके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे । विदेशी ताकतें आपकी कमर तोड़ने के लिए आपके ही बीच से कोई अपना टट्टू ढून्ढ लेंगी । आपकी नयी पीढ़ी इन सब से इतनी ऊब जाएगी की वो भी आपके ही खिलाफ बोलेगी । धीरे धीरे आपके पूर्वजों की संजोई हुई परंपरा का अंत होता दिखेगा ।
चुकी अब पुरानी हो चुकी पीढ़ी जो आपको सही रास्ता बता सकती थी वो "लुप्त" होने के कगार पर होगी , आपका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं बचेगा । इस तरह आप अपने सामने पूरी की पूरी सभ्यता का पतन होते देखेंगे । यह " कल्चरल टेररिज्म " , यानी सांस्कृतिक आतंकवाद , पूरी दुनिया में होता है , हो रहा है । ये उस "ग्लोबलाइजेशन" का हिस्सा है जहाँ सिर्फ एक ही तरह की सभ्यता का बोलबाला होगा , भले ही उसमें लाख बुराइयां हों । हम अंधे होने का ढोंग करेंगे , लेकिन याद रहे हम अंधे ही नहीं कायर भी थे ।
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