ये सन्देश बिहार के उन ३ करोड़ युवाओं के लिए है जो पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने वाला है । मुझे बीजेपी का अंधभक्त समझने वाले यहाँ से कट लें , ये बातें उनकी समझ नहीं आएगी । यहाँ राष्ट्र भक्ति सर्वोपरि है । ये पढ़ने के बाद खून न खौले तो वो खून नहीं ज़रूर पानी होगा । इसे शेयर कीजिये या अपने वाल पर छाप लीजिये , मुझे कोई परेशानी नहीं , लेकिन ये सब को जानने का अधिकार है |
ये लेख नितिश्वा (इशरत के अब्बा) और ललुआ (चारा चोर) के बारे में है । इनके कारनामो की लिस्ट बहुत लम्बी है । लेकिन शुरुआत एपीजे अब्दुल कलम से , ये ज़रूरी है जानना |
साल 2006 में पहली बार कलाम साहब ने नालंदा विश्वविद्यालय के जीर्णोधार की कल्पना की थी , जब वो बिहार के दौरे पर थें | जिसे आगे चलकर भारत सरकार ने कानून बनाकर सहमती दे दी , जो की इस ऐतिहासिक स्थल को जीवित करने के राह में बहुत बड़ा कदम था | इसका प्रथम चांसलर अमर्त्य सेन (परम लम्पट ) को बनाया गया | जिससे आहत होकर कलाम साहब ने खुद को इस विवि से अलग कर लिया | उनका कहना था की विवि को वही संभाले जो अपना पूरा समय बिहार में रहकर इसकी देखभाल करे | नितिश्वा (इशरत के अब्बा) ने कोई इमानदार पहल नहीं की उन्हें रोकने की और इसके साथ ही माँ सरस्वती के ज्ञान का दूत आपके दरवाज़े से ही लौट गया | हालांकि ये कुछ नया नहीं था बिहार के लिए , ये तो बस उस इतिहास का हिस्सा था जो सदियों पहले विदेशी अक्रमंकारियों के नालंदा पर आक्रमण से शुरू हुआ था , जहाँ से बिहार का पतन शुरू हुआ था , ज्ञान का पतन शुरू हुआ था | फिर बाद में गोपा सबरवाल को विवि वाईस चांसलर बनाया गया , उनकी महीने की तनख्वा 5 लाख है , जी हाँ 5 लाख , राष्ट्रपति की तनख्वा से भी कहीं ज्यादा , वो किस तरह से पद के लायक हैं , किसी को नहीं पता , मुझे तो समझ नहीं आया | इसके बाद अमर्त्य सेन ने जांच के डर से चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया | तब तक ये लोग करोडो रूपये फूँक चुके थें विवि के पैसे से , २ करोड़ तो सिर्फ मीटिंग में उड़ा दिए गयें | दिल्ली में इस विवि का किराया लाखों में है | ये किसी घोटाले से कम नहीं है |
इसके साथ एक घोटाला और हुआ यहाँ जी तोड़ कोशिश हो रही है इसे एक बुद्धिस्ट विवि बनाने की | oh Yeah !
आर्यभट जब केरल से पाटलिपुत्र आयें तब उन्होंने इस प्राचीन विवि का इस्तेमाल प्रयोगशाला के रूप में किया , जिसके बाद उन्होंने गणित और भूगोल के कई सिद्धांत दिए | उस समय न ही तो बुद्ध थें न बुद्धिज़्म , तो फिर ये झूट क्यूँ प्रसारित किया जा रहा है ?
असल में ये विवि भी कम्युनिस्टओं (साम्यवादियों ) का अड्डा बन कर रह जाएगा , जैसे दिल्ली का जवाहरलाल नेहरु विवि बना हुआ है | ये लोग आपको इतिहास सिखायेंगे और दर्शन शाश्त्र का पाठ सिखायेंगे जैसे , दर्शन और गरीबी से लड़ना इनकी बाप की जागीर हो | मजेदार बात ये है की ये साम्यवाद (कम्युनिज्म ) के नाम पर विदेशों से पूंजीपतियों से अपनी ngo की दुकान चलने के लीयते चंदा लेते हैं | यानि communist , capitalists का साथ लेकर यहाँ उत्पात मचा रहे हैं और कोई कुछ नहीं कर रहा |
पूरी तैयारी है बिहार को फिर से एक बार जातिवाद के आग में झोंक देने की | ललुआ (चारा चोर ) का बिहार बंद इसी को लेकर था | वो चाहता है की भारत सरकार जातिगत जनगणना जारी करे | इससे किसको क्या फाएदा आप भली भाति जानते हैं ? फिर से लोग इस आग में झुलसेंगे | आज पटना के गाँधी मैदान राजीनीतिक पार्टियों द्वारा भाँती भाँती के सम्मलेन हो रहे हैं , कहीं सुंडी समाज , कहीं पोद्दार समाज , कहीं तेली समाज , कहीं कायस्थ समाज , कहीं निषाद समाज , कहीं फलां ढीमका समाज की रैलियां की जा रही हैं | ये समाजवाद का ढोंग करने वाले जयप्रकाश नारायण के चमचे कभी भी असली समाजवाद की परिभाषा को आत्मसाद नहीं कर सकते हैं , समाजवाद का अर्थ इनके लिए है सिर्फ समाज को बाटना है , ताकि ये लोग अपनी मौजूदगी और अपने जिंदा होने का एहसास करा सके जिससे इनकी राजनीतिक नौकरी बनी रहे | ये काम गुंडों को खुद को इलाकों में बाँट लेने जैसा है | इतनी मुश्किल से बिहार रणवीर सेना , ब्रह्मेश्वर मुखिया जैसे लोगों के चंगुल से आज़ाद हुआ है , ये लम्पट जमात फिर से हमें वहीँ ले जाना चाहती है |
अब सब आप निर्भर करता है आप बिहार को कैसे राज्य के रूप में देखना चाहते हैं | शिक्षा और सम्मान का वो पुराना दौर वापस आएगा या नहीं ये आप लोग तय करेंगे | आज कोई भी यहाँ शिक्षा स्वास्थ व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दों पर बात नहीं कर रहा , बात हो रही है सिर्फ जाति और सिर्फ जाति की | राजनीति वैसे तो एक पवित्र शब्द है , लेकिन इस शब्द की लाज किसी ने नहीं राखी , इसे इन लोगों ने व्यक्तिगत उत्थान का माध्यम बना कर रख दिया है |
नितिश्वा (इशरत के अब्बा ) का पोल खोलना शुरू करूँगा तो शब्द कम पर जाएंगे , हम बिहारियों को इसने क्या दिया है , ये आप अपने आप से पूछिए , आज भी क्यूँ आपके घर वालों को पढने और काम के लिए बिहार से बाहर जाना पड़ता है | शराब की दुकाने सब से ज्यादा नितिश्वा के दौर में ही खुली हैं , खुद कहा था इसने ," पीने वाले पी ही लेते हैं ", और इसे प्रधानमन्त्री बनना है , और ये शायद बन भी जाए क्यूंकि ये चूतिये बनाने में माहिर है | आज बिहार बोर्ड की परीक्षा बिना चोरी की पूरी नहीं होती और मंत्री साहब कहते हैं "क्या करें, चोरी नहीं रोकी जा सकती ", क्या ऐसे लोगों से शिक्षित बनेगा बिहार |
अब आप सोचिये क्या करना है , फिर से जंगलराज में जाना है या जंगल राज में ले जाने वालों को सबक सिखाना है | आगे और बहुत कुछ है मेरे पास इनकी बैंड बजाने के लिए | ये ऐसे नहीं सुधरेंगे | ज़रुरत पड़ी तो हम इन्हें समाजवाद सिखायेंगे |
जय हिन्द !
ये लेख नितिश्वा (इशरत के अब्बा) और ललुआ (चारा चोर) के बारे में है । इनके कारनामो की लिस्ट बहुत लम्बी है । लेकिन शुरुआत एपीजे अब्दुल कलम से , ये ज़रूरी है जानना |
साल 2006 में पहली बार कलाम साहब ने नालंदा विश्वविद्यालय के जीर्णोधार की कल्पना की थी , जब वो बिहार के दौरे पर थें | जिसे आगे चलकर भारत सरकार ने कानून बनाकर सहमती दे दी , जो की इस ऐतिहासिक स्थल को जीवित करने के राह में बहुत बड़ा कदम था | इसका प्रथम चांसलर अमर्त्य सेन (परम लम्पट ) को बनाया गया | जिससे आहत होकर कलाम साहब ने खुद को इस विवि से अलग कर लिया | उनका कहना था की विवि को वही संभाले जो अपना पूरा समय बिहार में रहकर इसकी देखभाल करे | नितिश्वा (इशरत के अब्बा) ने कोई इमानदार पहल नहीं की उन्हें रोकने की और इसके साथ ही माँ सरस्वती के ज्ञान का दूत आपके दरवाज़े से ही लौट गया | हालांकि ये कुछ नया नहीं था बिहार के लिए , ये तो बस उस इतिहास का हिस्सा था जो सदियों पहले विदेशी अक्रमंकारियों के नालंदा पर आक्रमण से शुरू हुआ था , जहाँ से बिहार का पतन शुरू हुआ था , ज्ञान का पतन शुरू हुआ था | फिर बाद में गोपा सबरवाल को विवि वाईस चांसलर बनाया गया , उनकी महीने की तनख्वा 5 लाख है , जी हाँ 5 लाख , राष्ट्रपति की तनख्वा से भी कहीं ज्यादा , वो किस तरह से पद के लायक हैं , किसी को नहीं पता , मुझे तो समझ नहीं आया | इसके बाद अमर्त्य सेन ने जांच के डर से चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया | तब तक ये लोग करोडो रूपये फूँक चुके थें विवि के पैसे से , २ करोड़ तो सिर्फ मीटिंग में उड़ा दिए गयें | दिल्ली में इस विवि का किराया लाखों में है | ये किसी घोटाले से कम नहीं है |
इसके साथ एक घोटाला और हुआ यहाँ जी तोड़ कोशिश हो रही है इसे एक बुद्धिस्ट विवि बनाने की | oh Yeah !
आर्यभट जब केरल से पाटलिपुत्र आयें तब उन्होंने इस प्राचीन विवि का इस्तेमाल प्रयोगशाला के रूप में किया , जिसके बाद उन्होंने गणित और भूगोल के कई सिद्धांत दिए | उस समय न ही तो बुद्ध थें न बुद्धिज़्म , तो फिर ये झूट क्यूँ प्रसारित किया जा रहा है ?
असल में ये विवि भी कम्युनिस्टओं (साम्यवादियों ) का अड्डा बन कर रह जाएगा , जैसे दिल्ली का जवाहरलाल नेहरु विवि बना हुआ है | ये लोग आपको इतिहास सिखायेंगे और दर्शन शाश्त्र का पाठ सिखायेंगे जैसे , दर्शन और गरीबी से लड़ना इनकी बाप की जागीर हो | मजेदार बात ये है की ये साम्यवाद (कम्युनिज्म ) के नाम पर विदेशों से पूंजीपतियों से अपनी ngo की दुकान चलने के लीयते चंदा लेते हैं | यानि communist , capitalists का साथ लेकर यहाँ उत्पात मचा रहे हैं और कोई कुछ नहीं कर रहा |
पूरी तैयारी है बिहार को फिर से एक बार जातिवाद के आग में झोंक देने की | ललुआ (चारा चोर ) का बिहार बंद इसी को लेकर था | वो चाहता है की भारत सरकार जातिगत जनगणना जारी करे | इससे किसको क्या फाएदा आप भली भाति जानते हैं ? फिर से लोग इस आग में झुलसेंगे | आज पटना के गाँधी मैदान राजीनीतिक पार्टियों द्वारा भाँती भाँती के सम्मलेन हो रहे हैं , कहीं सुंडी समाज , कहीं पोद्दार समाज , कहीं तेली समाज , कहीं कायस्थ समाज , कहीं निषाद समाज , कहीं फलां ढीमका समाज की रैलियां की जा रही हैं | ये समाजवाद का ढोंग करने वाले जयप्रकाश नारायण के चमचे कभी भी असली समाजवाद की परिभाषा को आत्मसाद नहीं कर सकते हैं , समाजवाद का अर्थ इनके लिए है सिर्फ समाज को बाटना है , ताकि ये लोग अपनी मौजूदगी और अपने जिंदा होने का एहसास करा सके जिससे इनकी राजनीतिक नौकरी बनी रहे | ये काम गुंडों को खुद को इलाकों में बाँट लेने जैसा है | इतनी मुश्किल से बिहार रणवीर सेना , ब्रह्मेश्वर मुखिया जैसे लोगों के चंगुल से आज़ाद हुआ है , ये लम्पट जमात फिर से हमें वहीँ ले जाना चाहती है |
अब सब आप निर्भर करता है आप बिहार को कैसे राज्य के रूप में देखना चाहते हैं | शिक्षा और सम्मान का वो पुराना दौर वापस आएगा या नहीं ये आप लोग तय करेंगे | आज कोई भी यहाँ शिक्षा स्वास्थ व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दों पर बात नहीं कर रहा , बात हो रही है सिर्फ जाति और सिर्फ जाति की | राजनीति वैसे तो एक पवित्र शब्द है , लेकिन इस शब्द की लाज किसी ने नहीं राखी , इसे इन लोगों ने व्यक्तिगत उत्थान का माध्यम बना कर रख दिया है |
नितिश्वा (इशरत के अब्बा ) का पोल खोलना शुरू करूँगा तो शब्द कम पर जाएंगे , हम बिहारियों को इसने क्या दिया है , ये आप अपने आप से पूछिए , आज भी क्यूँ आपके घर वालों को पढने और काम के लिए बिहार से बाहर जाना पड़ता है | शराब की दुकाने सब से ज्यादा नितिश्वा के दौर में ही खुली हैं , खुद कहा था इसने ," पीने वाले पी ही लेते हैं ", और इसे प्रधानमन्त्री बनना है , और ये शायद बन भी जाए क्यूंकि ये चूतिये बनाने में माहिर है | आज बिहार बोर्ड की परीक्षा बिना चोरी की पूरी नहीं होती और मंत्री साहब कहते हैं "क्या करें, चोरी नहीं रोकी जा सकती ", क्या ऐसे लोगों से शिक्षित बनेगा बिहार |
अब आप सोचिये क्या करना है , फिर से जंगलराज में जाना है या जंगल राज में ले जाने वालों को सबक सिखाना है | आगे और बहुत कुछ है मेरे पास इनकी बैंड बजाने के लिए | ये ऐसे नहीं सुधरेंगे | ज़रुरत पड़ी तो हम इन्हें समाजवाद सिखायेंगे |
जय हिन्द !